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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jarn Oriental Library, Jarn 8 ddhant Bhavan, Arrah
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५६. जिनेन्द्रमाहात्म्य पुराण Opening :
श्री मत्सिद्धपदावुजद्वयरजः शुद्धाजनोन्मीलित-, प्रोद्यल्लोचनतो विलोक्य निखिल जैनस्मृतेनिश्चयम् । विद्वत्केसवनदिनाममुनिना प्रोक्ता यथा वै तथा,
निर्मास्यामि समस्तकल्मषहरी पौण्याश्रवी सत्कथाम् ।। Closing : वाछा श्री मज्जिनेन्द्रादिभूषणस्य च या हृदि ।
सा जिनेन्द्रप्रसादेन . सफली भवताध्रुवम् ।। Colophon : - इति मुमुक्षुसिद्धान्तचक्रवत्ति श्री कुन्दकुन्दाचार्यानुक्रमेण श्री
भट्टारकविश्वभूषण पट्टा भरण श्री ब्रह्माहर्षसागरात्मज श्री भट्टारकजिनेन्द्रभूपणविरचितम् श्री जिनेन्द्रपुराण समाप्तमिद शुभ भूयात् । सवत् १८५२ कार्तिकशुक्लप्रतिपदाया गुरुवासरे पुराणसमाप्ति ।।
श्री मूलसघे बलात्कारगणे भट्टारकमहेन्द्रभूषणेन इय पुस्तिका लिखापिता दत्ता स्टज्ञानावर्णी कर्मक्षयार्थम् ।।
यह पुस्तक जैन सिद्धान्त भवन में लिखी गई। शुभमिति पंष कृष्ण सप्तमी ७ मगलवार श्री वीर निर्वाण स० २४६२ विक्रम संवत् १९६२। ह. रोशनलाल जैन नेखक । विशेष--५५ कथाएं (चरित्र) है।
देखे-जि. र० को०, पृ० १३६ । ५७. जिनमुखावलोकन कथा Opening : चतुर्विंशतितीर्थेशान् धर्मसाम्राज्यवर्तकान् ।
नत्वा वक्ष्ये व्रत श्री जिनेद्रमुखावलोकनम ॥ Closing : - 'मौनव्रतसत्फनार्थकथकान दत्वय भूतले ॥ Colophon : इति मौनव्रत कथा समाप्तम्। लिखित पडित परमानदेन
रात्रौ गुरौ एकादश्या १९३२ सवत्सरे दिल्ली नगरे आयामल मदिरे शुभ भूयात् ।
द्रष्टव्य :-जि. र. को०, पृ० १३६ ।
५८. जीवन्धर चरित्र Opening : जयवती वरती सदा प्रथम रिपम अवतार ।
धर्मप्रवर्तन तिन कियो जुग की आदि मझार ॥