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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manusculpte (Purāna, Carta, Katha ) वसुसिद्धि अरु नव निधि वृद्धि सु रिद्धि जात पाइये ॥ Closing कही विनोदीलाल शारदगुरु परतापते । पूरन भई रसाल अद्भुत कथा सुहावनी ।। Colophon इति श्री प्रथम जिनेन्द्रस्तवने श्री भक्तामर महाचरित्रे भापा लालविनोदीकृत . कथा सम्पूर्णम् । सब मिलके चौपही दोहा ॥ ३७५६ ।। सवत् ॥ १९३८ मिती सावनशुक्लपक्षे अष्टम्या मगलवासरे आरा नगरे सम्पूर्णम् । १७. भक्तामर कथा Opening - देखे, ऋ० १६ । Closing : सख्या परम रसाल देखहु याही ग्रन्थ की। कही विनोदीलाल पट् सहस्त्र हूँ सतक पुनि ॥ Colophon श्री इति प्रथम जिनेन्द्र स्तवन श्री भक्तामर महाचरित्रे भाषा लाल विनोदीकृत चौपाई वध अडतालीसमी कथा सम्पूर्ण। सर्वकथा चौपाई छद श्लोक दोहा अरिल्ल (अडिल्ल) कु डलिया सोरठा काव्य ॥ ३७६० ॥ सपूर्ण शुभमस्तु । पौषमासे कृष्णपक्षे तिथौ ११ चद्रवासरे सवत् १९५४ । दस्तखत बलदेवदत्त पडित के । १८. भक्तामर चरित्र Opening : देखे, ऋ० १६ । Closing : देखे, ऋ० १७। Colophon इति श्री प्रथम जिनेन्द्रस्तवने श्री भक्तामरचरित्रे भापा लाल विनोदि कृत चौपाई बध अडतालीसमी कथा समाप्तम् । सर्वकथा चौपाई छद श्लोक दोहा अरिल्ल कु डलिया सोरठा काव्य । ३७६०। मिति श्रावणकृष्ण दशम्या रोज मगर (ल) वार सवत् १९५५ । श्लोक ५४००। यह अथ लिखावित वावू श्रीयाशदास वास्ते लोचना बीवी के दान देने श्री मुनीद्रकीर्ति जी भट्टारक जी को देने को लिखा चुनीमाली ने। १९. चन्द्रप्रभचरित्र Opening : वन्देऽह सहजानन्दकन्दलीकन्दवन्धुरम् । चन्द्राङ्क चन्द्रसकाश चन्द्रनाथ स्मराम्यहम् ॥ १॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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