________________
द्वितीय भाग।
(१३१)
-
-
ब्रहस्पती देखे है ! ब्रहस्पती को चन्द्रमा देखे है । ब्रहस्पती शनिश्चर को पन्द्रह विश्वा देखे है । और शनिश्चर ब्रहस्पती को दश विश्वा देखे है । और ब्रहस्पति शुक्र को पन्द्रह विश्वा देखे है । और शुक्र ब्रहस्पतीको पंद्रह विश्वा देखे है । इसके सब ही ग्रह बलवान बैठे हैं । सूर्य और मंगल दोनों याका अद्भुत गज्य वतलाते हैं । ब्रहस्पति और शनी बतालाते हैं कि ये वैराग्य को धारण कर मुक्ती पायेंगे। यदि एक ब्रहस्पति ही रच्च स्थान बैठा होय तो सर्व कल्याण की प्राप्ती का कारण है । और ब्रह्म नामा योग है । और मुहूर्त शुभ है । इस लिये यह अविनाशी सुख को प्राप्त करेगा । इसके सवही ग्रह बहुत बलवान हैं । यह ' बहुत पराक्रमी वालक है।
राजा-अापने इम पुत्र के नक्षत्र बताये। बड़ा उपकार किया। लीजिये यह भेंट स्वीकार कीजिये । (गले का हार देता है ) ( अंजना से ) चलो पुत्री तुम मेरे साथ हनुरूह द्वीप को चलो वहीं यह पुत्र वृद्धी पायेगा । ___ अंजना-में अपने को धन्य समझती हूं जो आप मुझे अपना सहारा दे रहे हैं । हे पुत्र तुम चिरजीवी होशे । तुम्हारे पैदा होते ही मेरे सारे दुःख नष्ट होते दिखाई दे रहे हैं। (सब चले जाते हैं। कुछ देर बाद उल पर्वत पर हनूमान
आकर गिते । पर्वत फट जाता है। हनूमान एक