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भीजैन नाटकीय रामायण ।.
भविनय किया था उस ही का फल तुम्हें मिल रहा है । उधर सासू ने दोष लगा कर घर से निकाली। पिता के घर गई वहां भी शरण न मिली । यहां माये मुनी महाराज के दर्शन से कुछ शान्ति मिली | फिर सिंह के पन्जे से बहुत कठिनाई से बचे । ये सब कर्मों का फल है।
अंजना-सखी, मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूं कि तुम मुझे हर संकट में सहारा देती हो । हा मेरा भाग्य, जब तक पति देव की कृपा नहीं थी तब मैं किस प्रकार ब्याकुल रहती थी । किन्तु फिरमी घर में रहती थी। पति देव की कृपा हुई जिस प्रकार वर्षा ऋतु में कभी सूर्य उदय होकर फिर छिप जाता है। अब मैं बन बन मारो फिर रही हूं। ' बसन्तमाना-देखो, सखी ऊपर कोई विद्याधर चला जा रहा है। मुझे तो इससे भय मालूम होता है ।
अंजना-हाय, भब यह अवश्य ही मेरे इस पुत्र रत्न को उठा कर लेजायगा । हाय, मेरा कैसा बुरा भाग्य है।
(रोती हुई) (इतने ही में हनूरुह द्वीप का राजा प्रतिसूर्य ।
। उसकी राणी और ज्योतिषी आते हैं।) राजा-( अंजना से ) मैं ऊपर विमान में बैठा हुआ जा