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________________ समर्पण श्रीमान् माननीय फूपाजी, (ला० मुनीवाजी साफ किरतपुरे बिजनौर ) आपने मेरे प्रति जो जो उपकार किये हैं मेरे लिये भांति भांति के कष्ट सहे हैं तथा ज्ञान की प्राप्ती कराई है जिससे मैं आज इस अवस्था में भा सका हूं । उसका मैं अत्यन्त आभारी हूं और मृणी हूं । यदि मैं उस ऋण से छूटना चाहूं तो जन्म जमान्तर में भी नहीं छूट सकता । किन्तु मुझे आपने इस प्रकार उन्नत बनाया, उसके फल स्वरूप मैं अपनी तुच्छ बुद्धी की इस कृति को श्रापके कर कमलों में समर्पण करता हूं। आशा है आप इसे हृदय से अपनायेंगे। आपके उपकारों के भार से नम्रीभूत: 'विमल' साथ ही साथ मैं ( श्री प्रद्युम्न कुमारजी रईस सहारनपुर 'पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस, सेठ मदनमोहनजी जैन उज्जैन तथा श्री रा० ब० द्वारकाप्रसादजी नहरौर ) इन सज्जनों के उपकार का आभारी हूं । श्राप सज्जनों ने मुझे ज्ञान प्राप्त करने में जिस प्रकार समय समय पर सहयोग दिया है, उसे मैं अपने सारे जीवन में नहीं भूल सकता । मैं आशा करता हूं श्राप सज्जन वृन्द अपने इस बालक की टूटी फूटी भाषा को पढ़कर हर्ष मनायेंगे
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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