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द्वितीय भाग ।
ब० मेरे मा बाप ने मुझे यह नहीं देखा कि हम किसे दे रहे हैं। दुष्टों ने धन के लोभ में भाकर मुझे इससे व्याह कर सदा के लिये विधवा बना दी हाय अब मैं किस का सहारा पकडुं १
( गिरती है। लड़का सम्हाल कर अपनी जंघा पर उसका सर रख लेता है। मुंह के आंसू पूछता है । हवा करता है । अबलाओं का भारत वर्ष से न्याय उठ गया ? बेचारी की जो आयू सुख भोगने की भी उसी में विधवा हो गई । विना माता पिता का बच्चा और बिना पती की विधवा स्त्री जो दुख भोगती है उसे कोई नहीं नान
ल० --- हे ईश्वर, क्या इन
देगी ?
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सकता ।
ब० - हाय, वीरसिंह ! में अब किस प्रकार अपना जीवन बिताऊंगी !
वीरसिंह - माता. चिन्ता न करो। तुम मेरे पास सुख से रहो मैं यथायोग्य तुम्हारी सेवा करूँगा ।
ब० - किन्तु तुम्हारी वह मुझे अपने घर में कैसे रहने बहू
अच्छा मैं
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बी० - उसका कोई फिकर मत करो मैं सब भुगत लूंगा । जाता हूं । ( जाता है )
अब ।