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जम्बूस्वामी चरित्र
स्वामीके इस उत्तरको सुनकर वह चोर निरुत्तर होगया तथापि वह एक और कथा कहने कना, जैसे मृदंगको मारनेसे वह ध्वनि निकालता ही है।
विद्यञ्चरकी कथा। एक धनुषधारी शिकारी भील विंध्याचल पर्वत पर रहता था। उसका नाग दृढ प्रहारी था। उसने एक दिन एक बग हाथीको जो सरोवर में प्यासा होकर पानी पीने गाया था जानसे मार डाला। पापके उदयमे उसी क्षण एक सर्पने भीलको डंस दिया, भील भी मर गया । वह सांप भी धनुषके गनेसे घायल होकर मर गया। वहां हाथी, मीक और सांर तीनों मृतक पड़े थे, इतने में एक भूखा स्वार वा नागया। वहां पर हाथी, भील, सांप व धनुपको पड़ा हुआ देखकर लोमके कारण बहुत हर्पित हुगा । वह स्यार मनमें विचारने लगा कि इस मरे हुए हाथीको छः मास्तक निश्चित हो ख:ऊँगा। उसके पीछे एक मासतक इय मनुष्य का शरीर भक्षण करूँगा। उसके पीछे सांपको एक दिनमें खा जाऊंगा। उन सबको छोड़कर आज तो मैं इस धनुषकी रासीको ही खाता हूं। उसमें बाण लगा था वह माण उसके तालमें घुस गया। पारके उदयसे वह डोरी खाते हुए बहुत कष्टसे मरा ।
ई कुमार ! जैसे बहुत सुखकी इच्छा करनेसे स्यारका मरण होगया वैसे तुम इस सांसारिक वर्तमानके सुखको छोड़कर मधिकमुखके लिये घरको छोड़ जाओगे तो हास्यको पाओगे।
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