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________________ जम्बूस्वामी चरित्र - यही निश्चय कर लिया कि पहले सब सुनना चाहिये फिर धनको चुराऊंगा । वह ध्यानसे उनकी वार्ताको सुनने लगा। वर व कन्याओंकी कथाओंको सुनकर उसे बड़ा शाश्चर्य हुमा । सोचने लगा कि कुमार के धैर्यकी महिमा कौन कह सक्ता है। इन वधुओंने किंचित् भी कुमारके मनको नहीं डिगाया । उधर जंबूकुमारकी माला घनडाई हुई मकान में इधर उधर फिर रही थी। बारबार कुमारके शयनालयके द्वारपर भाकर देखती थी कि इन स्त्रियों के मोहमें कुमार आया कि नहीं। यकायक भीतके पास खड़े हुए चोरको देखकर भयभीत हो बोली-यह कौन है ? तब विद्युचरने कहा कि माता! घबड़ा नहीं, मैं प्रसिद्ध विद्युच्चर नामका चोर हूं। मैं तेरे नगरमे नित्य चोरी किया करता हूं। अबतक मैंने बहुतोंशा धन चुराया है। तेरे घरसे भी सुवर्णान चुराये हैं। और क्या कहूं। इसीलिये आज भी माया हूं। कुमारकी माला कहने लगी हे वत्स ! तुझे जो चाहिये सो मेरे घरसे ले जा। तब विद्युच्चाने जिनमतीसे कहा-हे माता ! मुझे आज धन लेनेकी चिंता नहीं है, किंतु मैं बहुत देरसे यह जपूर्व कौतुक देख रहा हूं कि युवती स्त्रियों के फटाक्षोंसे इस युवानका मन किंचित् भी विचलित नहीं हुमा है । हे माता ! इसका कारण क्या है सो कह । अब तु मेरी धर्मकी बहन है, मैं तेरा भाई हूं। तब जिनमती धैर्य धारकर कहने लगी-एक ही मेरा यह कुलदीपक पुत्र है। मैंने मोहसे इसका भाज विवाह कर दिया है। परन्तु यह १६२
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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