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जम्बूस्वामी चरित्र हे स्त्रियो ! वही विपत्तिमें पड़ना चाहता हूं। यदि मैं तुमसे संसगा करके भोग भोगू, और मोहसे कर्म बांधू-जब काँका उदय होगा और मैं भवसागरमें डूबूंगा तब मुझे कौन उद्धार करेगा ? इस दृष्टांतसे पद्मश्रीकी कथाका खण्डन होगया ।
कनकनीकी कथा। तब कनकधी कौतूहलसे पूर्ण कथा कहने लगी-रमणीक कैलाश पर एक बन्दर रहता था। एक दिन वह पर्वतकी चोटीपर चढ़ गया। यकायक वह गिर गया । शरीरके खण्ड खण्ड होगए। शांत आवसे अशाम निर्जरासे मरकर एक विद्यारशा पुत्र हुआ। एक दफे बड़ी भायु पानेपर विद्याधरने मुनि महाराजसे नमन करके अपना पूर्व अव पूछा । मुनि महाराजने अवधिज्ञान नेत्रसे देखकर कह दिया कि पूर्व जन्ममें तुम बन्दर थे । कैलाशले गिरकर पुण्यके फकसे विद्याधर हुए हो। इस बातको सुनकर विद्याधरने कुमति ज्ञानसे यह मन निश्चय कर लिया कि जिस स्थानसे मरकर मैं कविसे विद्याधर हुआ हूं, उसी स्थानसे गिरकर यदि मैं फिर मरूंगा तो अवश्य देव हो जाऊंगा । इसलिये मुझे अवश्य जाकर कैलाशके शिखरले गिरकर मरना चाहिये । एक दिन विद्याधरने अपनी स्त्रीसे आने मनकी बात कही कि हे प्रिये ! कैलाशके शिखरले गिरकर मरनेसे स्वर्ग मोक्षके फल मिलते हैं, इससे मैं कैलाशसे पडूंगा। उसकी स्त्री सुनकर दीनमन हो दुःखित होकर रुदन करने लगी व कहने लगी-हे स्वामी ! भाप बड़े बुद्धिमान
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