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जम्बूस्वामी चरित्र
भावदेव प्रमाद रहित हो तप करते थे । कुछ काल पीछे भावदेव उसी नगर में गए और धर्मानुरागसे छोटे भाईंके समझानेको उसके घर गए । धर्मो देिश देकर उसे गुरुके पास ले आए ।
भवदेवने शुद्ध बुद्धि होनेपर भी शव्यसहित कज्जा से गुरुके पास दीक्षा लेली | जब किसी कारण से उसकी शल्य दूर होगई । तब वह मुनिराज के साथ २ चारित्रको पालता हुआ चारित्रका भंडार होगया | भावदेव भवदेव दोनों मुनिचारित्रको पालते हुए, अंतमें समाधिमरणपूर्वक प्राण त्याग कर तीसरे सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुए। वढां उपपाद शय्या में अंतर्मुहूर्त में पूर्णयौवनवान होकर उठे और सातसागरपर्यंत मनोहर भोगोंको विना किसी विघ्न वाघाळे भोगते रहे । आयुके अंत में भावदेवके नीच तुम सो वज्रदंत राजाके घर में सागरचंद्र पैदा हुए। और भवदेवका जीव चक्रवर्तीके घर में शिवकुमार नामका पुत्र हुआ है जो सूर्य के समान तेजस्वी है । तुम्हारे दर्शन मात्र से उसको अपने पूर्वभवका स्मरण होजायगा और वह संसार शरीर भोगों से विरक्त होजायगा ।
इसतरह कुमारने मुनिराज से अपने पूर्वभव सुने । संसारको असार जानकर अपना मन धर्मसाधन में तत्पर कर दिया। वह विचारने लगा कि इस जगत में सर्व ही प्राणी जन्म, मरण, जराके स्थान हैं । इस जगत के भोगोंमें कुछ सार नहीं है, सार यदि कुछ है तो वह मुक्ति सुखको देनेवाला दयामई जैनधर्म है। उसी धर्मकी सेवासे इन्द्रियोंके व कषायके मदको दमन किया जासक्ता है। जो कोई
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