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लापूरबानी परित्र रुपर्शमें न आने योग्य एक द्रव्य है, जो जीवादि पदार्थीको अवगाह देता है। काल द्रव्य वर्तना लक्षण है, सर्व द्रव्य मपने २ गुणों की पर्यायोंमें वर्तन करते हैं उनके लिये कालद्रव्य निमित्त कारण है । जिस तरह कुम्हारके चक्रके स्वयं घूमनेमें नीचेकी शिला कारण है इसी तरह स्वयं परिणमन करनेवाले द्रव्योंकी पर्याय पकटने में निमित्त कारण काल है ऐसा पण्डितोंने कहा है। व्यवहार समय घटिका
आदि कालसे ही मुख्य या निश्चय कालका निर्णय होता है, क्योंकि निश्चय कालके विना व्यवहार झाल नहीं होसकता । व्यवहार काल परम सूक्ष्म एक समय है, जो निश्चय काल-कालाणु द्रव्यकी पर्याय है। जैसे बाहीक या पंजाबीको देखनेसे पंजाबका निश्चय होता है, पंजाब न हो तो पंजाबका निवासी नहीं कहा जासक्ता । काल द्वय कालाणुरूपसे मसंख्यात है, लोडाकाश प्रमाण प्रदेशोंमें मिण २ रत्नोंकी राशिके समान व्यापक है। क्योंकि एक कालाणुका प्रदेश दुसरे कालाणुके प्रदेशसे कभी मिलता नहीं है। इसलिये कालको काय रहित कहते हैं। शेष पांच द्रव्यों के प्रदेश एकसे अधिक है व एरस्पर मिले हुए हैं इसलिये इन पांच द्रव्योंको पंचास्तिकाय कहते हैं।
धर्म, मधर्म, भाकाश तथा काल ये चार मजीव पदार्थ शरी. शादि गुणरहिन होनेसे अमूर्तीक हैं, केवल पुद्गल द्रव्य मूर्तीक है, क्योंकि उनमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाया जाता है। पुद्गलके भेद सुनोः
स्पर्श, रस, गंध, वर्ण इन चार मुख्य गुणों के धारी पुद्गल द्रव्यको