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जम्बूस्वामी चरित्र श्री मंडपके वहां पहुंचा, धर्मचक्रकी प्रदक्षिणा दी, पीठकी पूजा की, फिर गंधकुटीक मध्यमे सिंहासनार उदयाचलपर सर्यले समान विराजित श्री जिनेन्द्रका दर्शन किया। जिनेन्द्र पर चमर ढर रहे थे। भगवान साठ पातिहार्य सहित विराजमान थे। तीन लोडके प्रभु जिनेश्वादेवकी गंधकुटीकी तीन प्रदक्षिणा दी, फिर बड़ी भक्तिसे श्री जिनेन्द्रकी पूजा की। पुजाके पीछे बड़े भाबसे स्तुति की। उस स्तुतिका भाव यह है-आपको नमस्कार दो, नमस्कार हो, नमस्कार दो। आप दिव्यवाणीके स्वामी है, नाप कामदेवको जीतनेवाले हैं, पूजनेयोग्य है, धर्मही ध्वजा हैं, धर्मके पति हैं, कमरुपी शत्रुओंके क्षय करनेवाले हैं, नाप जगतके पालक हैं, आपका सिंहासन महान शोभायमान है, आपके पास अशोक वृक्ष शाखाबों हिलता हुमा, ऊंचा व आश्रय करनेवालोंको छाया देता हुआ विराजमान है। वक्ष भक्तिसे चमर ढारते हुए मानो भक्तजनों के पापोंको उड़ा रहे हैं । स्वर्गपुरी पुण्यशी वृष्टि होरही है, मानो स्वर्गकी लक्ष्मी हर्षके मारे मश्रुबिंदु क्षेषण कर रही है। भाकाशमें देवदुंदुभि बाजे बजते हैं। मानो आपकी जयघोषणा कर रहे हैं कि मापने सर्व कर्मशत्रुओंको विजय किया है। आपमें शुद्ध ज्ञान, दर्शन, वीर्य, चारित्र, क्षायिक सम्यग्दर्शन, अनंतदानादि लब्धियां हैं। मोतियोंसे शोभित भापके ऊपर तीन छन विराजित हैं जो भाप निमल चारित्रको प्रगट कर रहे हैं। भापके शरीरका प्रभामण्डल फैला हुवा है, मानो भापका पुण्य मापको अभिषेक