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प्रथम भाग।
(५३)
गया है। आपके धन्य भाग्य हैं। जो ऐसे पृथ्वी पर श्रेष्ठपुरुष से आपकी बहिन का गंधर्व विवाह हुआ।
रावण-प्रिये तुम सत्य कहती हो । मैं तुम्हारी बात को स्वीकार करता हूं तुम्हारे जैसी विचार वान शुभ मंत्रणा देने वाली नारी संसार में बहुत कम जन्म लेती हैं।
(सव चले जाते हैं। अंक द्वितिय-दृश्य आठवां
(बाली का दर्बार) दूत-(प्रवेश करके ) महाराज की जय हो । लंकापुरी से रावण का दूत भाया है। मापसे भेंट करना चाहता है । बाली-उसे आदर पूर्वक यहां बुला लाओ।
(दूत जाता है रावण का दूत आता है) रावण का दूत-महाराज वाली की जय हो। बानी-कहो महाराजा रावण सकुटुम्ब सुखी हैं ? वहां से क्या समाचार लाये हो?
दूत-महाराज की कृपा से सब प्रसन्न चित्त हैं । महाराजा धिराज रावण ने आपके पास समाचार भेजे हैं कि आपके पिताजी जिनको हमने संकट से बचा कर राज्य दिया था अब वह बन में दीक्षा ले गये हैं। हम आपके प्रति सहानुभूति प्रगट करते हैं और भाज्ञा करते हैं कि आप हमारे यहां पाकर हमें प्रणाम करो