________________
जम्बूस्वामी चरित्र
ग्यारह मुनिराज हुए-विशाल, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जयसा, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिमान् , अंगदेव, धर्मसेन । यहांतक । धात्मा भादि तत्वों का पूर्ण उपदेश होता रहा। उनके पीछे क्रमसे दोसौ बीस वर्षाने ग्यारह अंगके पाठी पांच मुनीश्वर हुए-नक्षत्र, जयमाल, पांडु, ध्रुवसेन व इंसाचार्य। इस समय तत्वोपदेशकी कुछ हानि होगई । जैसे हाथकी हथेलीमें रखा हुआ पानी बूंद बूंद करके गिर जाता है, फिर एकसौ पठारह वर्षों में क्रमले प्रथम अंगके पाठी पांच मुनि हुए-सुमद्र यशोभद्र, सद्बाहु, महायश, लोहाचार्य । इनके समय में तत्वोदेश एक भाग ही रह गया। आगे आगे चलकर और भी तत्वोपदेश कम होगया । क्योंकि पचम. झालके दोषले मानवोंकी बुद्धि हीन हीन होती चली गई ।
इस दुषमा पंचमकालमें मानवोंकी आयु साधारणरूपसे एकसौ वीस पर्यंतकी होजाती है। इस कालमें अप्रमत्त वित्त सातवां गुणस्थान तक ही होती है। कोई साधु उपशम या क्षणी नहीं चढ़ सक्ता है न इस काल में दोनों मनःपर्ययज्ञान होते हैं। देशावधि तो होती है, परन्तु परमावघि च सर्वावधि नहीं होती है। ताकी हानि होनेसे सब ऋद्धियां सिद्ध नहीं होती हैं। पंचनल्याणकोंक न होनेसे देवोंचा मागमन नहीं होता है। कहीं किसी समय कोई २ क्षद्र देव किसी कारणले पाते हैं, ऐसा जिनागममें कहा है। उत्कृष्ट भायु १२० वर्षकी होती है। शरीरकी ऊंचाई एक धनुषकी या चार हाथकी होती है। जैसे २ काल वीतता है, मानवोंकी गायु