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श्री जैन नाटकीय रामायण।
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हैं बोझ खींचते..अरु पिटते, भूखे प्यासे दुखिया भैंसे ।। ३ जो बंधे. कसाई के घर में, भय खाते खैर मनाते हैं। किन्तु कटते हैं बेचारे, उसके हाथों भुट्टे जैसे ॥ ४ जंगल में भी जो रहते हैं, वो एक एक से डरते हैं ।
आखेट खेलने जो जोते, निर्देई होकर मोरे ऐसे ॥ ५ ॥ कोई कहे देव सुख पाते हैं, वो भी ईी से जलते हैं । जब मायू थोड़ी रहजाती, रोते विधवा नारी जैसे ॥६॥ मनुजों में भी ये ऊँच नीच, का भाव सदा दुख देता है । इक राजा बनकर बैठा है, एक मांग रहा धेले पैसे ॥ ७ ॥
। पर्दा गिरता है । दृश्य समाप्त
अंक द्वितिय--'दृश्य सातवां कुम्भकरण-( भागा भाकर) कहां गया, कहां गया वह दुष्ट खर दूषन ?
विभीषण-( दूसरी ओर से आकर ) वह निकल गया। हमारी बहन चन्द्रनखा को हर कर ले गया। · कुंभकरण-मैं उसे इसका फल दूंगा । अभी उसके नगर पर धावा बोल कर उसे हराऊंगा और बहन को वापिस लाऊंगा।
विभीषण-जाने दीजिये माई साहब । वह बहुत बलवान