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श्री जेननाटकीय रामायण
- अँक द्वितीय-दृश्य चतुर्थ (नारदजी अपनी बीणा बजाते हुवे आते हैं)
गाना जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जयजिनेन्द्र, जयजिनेन्द्र,
( थोड़ी देर गाकर इधर उधर देखकर आश्चर्य से ) हैं, यह तो पुंडरीक नगर मालूम पड़ता है, यहां तो मैं वजूजघ के राज्य में आगया । अहा, ये भी नगर क्या ही सुन्दर है । ( सामने देखकर ) हैं, सामने से ये दो बालक कौन आ रहे हैं ? इन्हें देख कर मुझे राम लक्ष्मण का धोखा होता है । अहा कैसी मनोग्य जोड़ी है। बिल्कुल इन्द्र सरीखे मालूम पड़ रहे हैं।
दोनों--( श्राकर ) नारदजी के चरणों में प्रणाम ।
नारद-चिरायु होवो पुत्रों ! राम लक्ष्मण जैसी मान्यता श्रेष्ठता और वैभव को प्राप्त करो।
लवण-क्यों नारदजी ! राम लक्ष्मण कौन हैं ? कहां रहते हैं उन्होंने क्या श्रेष्ठता प्राप्त की है ?
नारद-हा, हा, हा ! पुत्रों तुम नादान हो । तुम्हें अभी मालूम नहीं सुनो मैं उनका तुम्हें प्रारम्भ से वृतांत सुनाता हूं।
अंकुश-- सुनाइये महाराज बड़ी कृपा होगी। . नारद--इसी भरत क्षेत्र में एक अयोध्यापुरी है वहां पर राजा