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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
आगे तू न टिक सकेगा । जिसके कुल का कुछ पता नहीं उसे पृथुमती अपनी कन्या नहीं दे सकता ।
अंकुश-(भा कर) क्या कहा ? ओ अभिमानी ठहर मैं आज मुंह से नहीं बाणों के द्वारा तुझे अपना कुल बताऊंगा।
मेरे बाणों से तुझको, याद आजायेगा कुल मेरा । सम्हल कर युद्ध कर ले, देख क्या कहता धनुष मेरा ।।
पृथुमती-ओ नीच बालक ! इतना बढ़ कर न बोल । क्षत्रियों के सामने मुंह न खोल ये जवान तेरी खेल में चल सकती है युद्ध में नहीं। बच्चों की है खिलवाड़नहीं, ये युद्ध क्षेत्र कहलाता है। प्राणों की भेंट चढ़े इसमें, जो ज्यादा बात बनाता है। बच्चे जाकर के माता को, गोदी में दूध पियो थोड़ा। डरता हूं बालक हत्या से, जा भाग तुझे मैंने छोड़ा । लवण-हम बाल नहीं हैं काल तेरे, हम रणमें तुझे हरायेंगे।
है नीच कौन इसका परिचय, नीचा करके बतलायेंगे । मामा की आज्ञा टाली है, इसका फल तुझे चखाऊंगा। किस कुल के बालक हैं, तुझको बाणों द्वारा बतलाऊंगा ॥
प्रथुमती-जा भागजा | क्या कभी मेंढकने भी पहाड़ को उठाया है । क्या बच्चों से युद्ध जीता जाता है ! जाओ मैं फिर