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भी जैन नाटकीय रामायण
इस जगत में अन्धकार है।
__मदनांकुश-माता! आप क्षत्राणी होकर ये कैसी बातें कर रही हैं याज्ञा दीजिये । छोटा सा सिंह का बच्चा बड़े बड़े गज राजों को नीचा दिखाता है।
सीता-यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो दोनों भाई जाओ युद्ध से विजय पाकर लौटो। (दोनों चले जाते हैं। सीता भी चली जाती है । पर्दा
खुलता है। राजा वज्रजंघ का दबार ) बज्रजंघ-शीघ्र उसही दुष्ट पर सेना ले चलने की तैय्यारी करो । मैं उसे क्षण मात्र में हराकर उसकी पुत्री का विवाह मदनांकुश से करूंगा । अह ! वो कैसी योग्य जोड़ी है। जिसे देखकर इन्द्र भी लजाता है। ये बड़े भाग्यशाली बालक हैं। इनसे संबंध जोड़कर मैं अपने को धन्य समझंगा।
सैनिक-राजा पृथुमती बड़ा मुर्ख है जो इतने अच्छे बर को अपनी कन्या देने से मना करता है। वो अभिमानी है उसका मान हम लोग अवश्य भंग करेंगे।
दोनों पुत्र-(भाकर) मामा जी के चरणों में प्रणाम ।
वजनंघ-चिरंजीव हो पुत्र । इस समय मेरे पास माने का क्या कारण है ।