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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
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दूल्हा उससे चार बरस बडा था । वह सुख से अपने पती के साथ प्रेम पूर्वक रहती है। यहां पर आकर बेचारे कल्लू का सहारा था। उसको भी अब ये निकाल रहे हैं। अब मैं अपनी बाली उमर किसके संग बिताऊँगी।
गाना बाली उमर नादान, छोटासा मेरा बालमा । रंग नहीं जानत, ढंग नहीं जानत, ठंग नहीं जानत। प्रेम का है अनजान, नन्हा सा मेरा बालमा बा०॥ जोवन मेरा छल छल छलके, छल छल छलके । पीया मिलनको जीया ललके, जीया ललके । तड़फत हूँ हैरान, आवे ना मेरा बालमा ॥बाली०॥
(सामने से रामू को आते देख कर.) बह-राम आरहा है, ( रोने लगती है)। राम-बहूजी क्या बात है ? कहिये तबियत तो ठीक है। बहू-हां जरा पैर में दर्द है। रामू-अगर सरकार का हुकम हो तो पैर दबा हूँ ? बहू-हां जरा दरद जाता रहेगा। (रामू पैर दबाता है। वो फिर रोने लगती है।) रामू-क्यों बहूजी भब कहां दर्द है।