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चतुर्थ भाग
( २८३ )
पुरुषों की सहायता करना मनुष्य के लिये परम धर्म है । दूत ! तुम जाओ श्री रामचन्द्रजी से मेरा समाचार कहो । मैं तन मन
धन से उनका साथ दूंगा ।
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दूत - जो थाज्ञा महाराज | ( चला जाता है )
( विभीषण भी चला जाता है । पर्दा खुलता है । ) ( रामचन्द्रजी अपने सब मित्रों सहित बैठे हुये हैं । ) सेवक
गाना
न्याय पर होजायो बलिदान ।
न्याय मार्ग पर चलें पुरुष जो, सहते कष्ट महान । नहीं ध्यान दे बनते उन्नत, पाते हैं सम्मान ॥ न्याय मार्गका धारक रावण, करता है अन्याय । पर स्त्री को हर कर मूरख, बना बड़ा अज्ञान ॥ न्या० ॥ न्याय मार्ग पर युद्ध छिड़ेगा, शत्रु का संहार । न्याय मार्ग पर लड़ने वालों, का होगा यश गान ॥ न्या०
हनुमान - ( श्राकर ) महाराजा रामचन्द्र की जय हो । राम - कहो मित्र क्या समाचार लाये ? सीता की क्या अवस्था है ।
राम -- (चूड़ामणी को हृदय से लगाकर मूर्छित होजाते हैं