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( २७८)
श्री जैन नाटकीय रामायण
मरा हुमा उसे मेरे पास पकड़ कर लाओ।
मेघवाहन-~जो आज्ञा ! (-चला जाता है)
रावण-कोई डर की बात नहीं । देखता हूं कौन कौन | मुझसे अलग होकर उन निर्धन बनासियों की सहायता करता है। यदि सारे पृथ्वी के राजा लोग एक ओर होजायें तो भी क्या परवाह है रावण अकेला ही सबको काफी है।
दूत--( भागा आकर । महाराज गजब होगया । हनुमान अकेला ही सबको मार मार कर भगा रहा है। मेघवाहन खतरे में है तुरन्त सहायता भेजिये ।
रावण--ओ ! उस चार दिन के छोकरे में ये शक्ती । इन्द्रजीत-पिताजी मुझे श्राज्ञा दीजिये मैं अभी उसे नाग पाश द्वारा बांध कर दर्बार में लाता हूं। रावण-जाओ उसे मेरे सामने पकड़ कर लाओ ।
(इन्द्रजीत चला जाता है) आखिर ये हनूमान उनकी सहायता के लिये गया क्यों ?
मन्त्री-सुनिये महाराज | सुग्रीव की राम ने सहायता की इस लिये सुग्रीव ने इन्हें बुलाया ये राम की सहायता के लिये आये। वहां से सीता को सुध लेने के लिये चले । बीच में इनके नाना का नगर पड़ा उसको इन्होंने जीत कर राम की सहायता के लिये भेजा । अगाडी बढ़ने पर एक बन में दो मुनि