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(७३ ) श्राविकाओं कोभी, जैनाभास ढुंढक मत त्यागन करवाया, और सत्य धर्म अंगीकार करवाया. संवत्, १९४३, में कार्तिक वदि पंचमी (पंजावी मृगसीर वदि पंचमी) के रोज, श्री शत्रुजय तीर्थो परि, च तुर्विध संघने “ सूरिपद"दीना, जिसमें "श्री मदि ज्यानंद सूरि," ऐसा नाम स्थापन करा. ..
(६१) श्री विजयदेवसूरि, तथा श्री विजयसिंह
सूरि के पाट ऊपर श्री विजय प्रभसूरि. वि०, १७४९.
(६२) श्री विजयरत्न संरि
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- (६३) श्री विजय क्षमा सूरि. यहां से बहोतही
शिथिलाचार प्रचलित हुआ.
(६४) श्री विजय दया सूरि.
(e) (६५) श्री विजय धर्म सूरि.