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(७१) जय गच्छ प्रसिद्ध हुआ.* तथा श्री विजय आणंद सूरि. इनोंसें आणंद सूर गच्छ निकला. श्री विजयदेवसूरि, तथा विजय आणंदसूरी, दोनों गुरु भाईथे, और एकही पाट पर हूयेहै. अ-श्री विजय देव सरिके समय विमल गच्छमें ज्ञानविमलसूरिहूए. तथा इनोंहीके समय शांतिदास शेठकी मददसें सागर गच्छ निकला. ब-श्री विजयसिंह सूरिके शिष्य सत्यविजयगणि
तथा श्री मद्यशोबिजयोपाध्याय, इन दोनोंने श्री विजयसिंहसूारिकी आज्ञासे क्रिया उधार करा. तथा शिथिला चारी साधुओंसें, और ढुंढक मती पाखंडीयोंसें जूदे मालुम होनेके वास्ते, पीतवस्त्र धारणकरा, सो संप्रदाय अवतक चला आता है. और गुजरात विगेरे देशोंमें प्रायःसर्व जगे प्रसिध्धहै.
श्री विजयसिंह सूरिसें लेके इस वृक्षके कर्ता 'जिसमें इस इतिहास रूप वृक्षके लिखने वालेहुयेहै.