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SEATS:
कानामा लिखारीने लंपक (लाकाः) म जैनशास्रोंसें विरूद्ध स्वकपोलकल्पित निका ला, परंतु संवत् १५३३-३४, तक इसका उ.. पदेश किसीने माना नही. पीछे, १५३३-३४, , मेही एक भूणा नामा वाणियालंकेको मिला, तिसने लुकेका उपदेश माना.लंकेके कहनेसे तिस भूणेने विनाही गुरुके दीये अपने आप वेष पहना,और मूढ लोगोको जैनमार्गसें भ्रट करना शुरु कीया. लोंकेने अपने मतानु कूल,३१, इकतीस शास्र सच्चे माने. और इ. कतीसमें भीजहाजहां जिनप्रतिमाका अधिः । कार आतारहा, तहांतहां अपनी कल्पनासें' मन घडित खोटा अर्थ करने लगा.इस लंपक . मतमेंसें संवत्, १५७०,में वीजा नामा वेषधरने वीजा नामा मत निकाला. और संवत्, १५७२, में रूपचंद सराणेने स्वयमेवभेष पेह
नके नागोरी लंपकमत निकाला. इसने प्रति .५ माका उध्यापन नहीं करा.
लंकेका निकाला हुआ जो मत है, उसकों