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________________ MAA - (४१) श्री विजयसिंहमूरिमा ___ (४२) श्री सोमप्रभसूरि... -विक्रमात्, १२३६, साढ पूनमीया मत निकला ___ श्री वीरात् , १६९२, वर्षे वाग्भट्ट मंत्रीने साढेती ___ कोड रूपक खरचके श्री शत्रुजय तीर्थका, १४, ची हमा उद्धार कराया. . . . व-विक्रमात् , १२५०, आगमीयामत निकला. (४३) श्री मुनिरनसूरि.* ......... (६७) [१४] श्री जगच्चंद्रसूरि. विक्रम संवत्, १२८३ में इनआचार्यका बड़ा भारी तप देखके चितोडके राणेने “तपागच्छ” नाम दीया. यह निग्रंथ गच्छक का नाम हुआ. ६८] [१५] श्री देवेंद्रसूरि विक्रमात्, १३२७ स्वगः * किसी किसी पट्टावलिमें 'मुनिरत्नसूर के ठिकाने 'मणिरत्नम् नाम लिखाहै, तथा श्री सोमप्रभमूरि और श्री मणिरत्नसार । श्री विजयसिंहमूरिके पाट ऊपर होनेसे एकही नंबर में लिखे हैं। 11
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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