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________________ (५५) __७७२, वर्षे श्री आचारांग, सूत्रकृतांग सूत्रोंकी वृत्ति कर्ता, श्री शीलांकाचार्य. तथा विक्रमात्, ११२०, वर्षे ओघनियुक्ति वृत्तिकर्ता, श्री द्रोणाचार्य, [४] विद्याधरसूरि, तिनमें विद्याधर कुल निकला. इस कुलमें विक्रमात् ५८५, वर्षे श्री हरिभद्रसूरि, १४४४ ग्रंथकर्ता. यह कथन कल्पसूत्र पदावली आदि ग्रंथोमें है. (१६) श्री चंद्रसूरि. इनोंसें निग्रंथ गच्छका तीसरा नाम चंद्रगच्छ पडा. पट्टावल्यादौ. अ-श्री वीरात् , ६०९, वर्षे कृष्णमूरिके शिष्य, शिवभूति सहलमल्लने दिगंबर मत निकाला. इसका विशेष वर्णन श्री विशेषावश्यक सूत्रादि ग्रंथोमें है. तिस शिवभूति सहस्रमल्लके दो शिष्य हूये. कोडिन १, और, कोष्टवीर. २: पीछे धरसेन, १, भूतिबली, २, पुष्पदंत ३ हूए. श्री वीरात्, ६८३, वर्ष पीछे भूतिवली और पुष्पदंतने ज्येष्टसुदि ५, के दिन शास्त्र बनाने प्रारंभ करे. ७००००, श्लोक प्रमाण धवल, ६००००, श्लोक प्रमाण जयंधवल, और, ४००००. श्लोक प्रमाण महाधवल. यह तीनों ग्रंथ अबभी क
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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