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( ५२ ) ७, आर्य रक्ष, ८, आर्य नाग, ९, आर्य जेहिल, १० आर्य विष्णु, ११, स्थविर आर्य कालका, १२७ स्थविर आर्य संपलीय, तथा आर्य भद्र, १३, आर्य वृद्ध, १४ आर्य संघपालित, १५, आर्य हस्ति, १६ आर्य धर्म, १७, आर्य सिंह, १८, आर्य धर्म, १९, आर्य सिंह २०, आर्य जंबू, २१ आर्य नंदिक, २२, आर्य देसी गणि, २३, आर्य स्थिरगुप्तक्षमाश्रमण, २४, स्थविर कुमारधर्म, २५, स्थविर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, २६४ यह पट्टावली वल्लभी वाचनाके कल्पसूत्रानुसारहै. श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणने श्रीवीरात्,, ९८०, वर्ष, पीछे एक कोटि पुस्तक ताडपत्र ऊपर लिखें. यहांसे पुस्तकारुढ हुये. यह कथन श्री आवश्यक सूत्र, क ल्पसूत्र, प्रभाविक चरित्र, आत्मप्रबोधादि ग्रंथो में हैं.. ब-माधुरी वाचना होनेसें श्री नंदीसूत्रमें इस तरेसें,
श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणवाली पट्टावली लिखिहै। सोइ लिख दिखाते है. श्री सुधर्मस्वामी. (१) श्री जंबूस्वामी. [२] श्री प्रा. भवस्वामी. [३] श्री सय्यंभवस्वामी. [४] श्री यशोभद्रस्वामी. [५] श्री संभूतिविजय, तथा भद्रवाहुस्वामी. [६] श्री स्थूलभद्रस्वामी. [७] श्री आर्य म:
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