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श्यक सूत्र,त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरितादि ग्रंथोमें है.
तथा इस वर्तमान कालमें जो चारों वेद है, तिनकी उत्पत्ति दात्तर मोक्ष मूलर साहिब, अपने बना ये संस्कृत साहित्य ग्रंथों जैसें लिखते है, कि “वेदोंमें दो भाग है. एक छंदो भाग, और दूसरा मंत्र भाग. तिनमें छंदो भागमें इस प्रकारका कथन है, कि जैसें अज्ञानीके सुखसें अकस्मात् वचन निकले हो, और इसकी उत्तलि ३१०० इकतीसो वर्षसें हूइ है, और मंत्र भागकों बने हूए २९०० उनतीसो वर्ष
इन वेदों ऊपर अवट, सायण, महीधर, और शंकराचायोदिकोने भाष्य, टीका, दीपिका आदि. वृत्तिओं रची है, उन माध्यादिकों को अयथार्थ जानकर दयानंद सरस्वती स्वामीने अपने कल्पित, मतानुसार वेदोक्त हिंसा हुपानेके लिये नवीन भा- प्य बनाया है, परंतु पंडित ब्राह्मण लोक दयानंद सरस्वतीके भाष्यको प्रमाणिक नही मानते है. .
(२३) .. .. श्री पार्थनाथ स्वामी अरिहंत, तिनके १०, ग.. णधर और, १० गच्छ. आवश्यकादो.