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'ठहराया. पीछे- याज्ञवल्क्यसें, और सुलसासें पीप्पलाद पुत्र उत्पन्न हुआ, तिनका वृत्तांत जैन मतके ग्रंथो में जैसा लिखा है.-काशपुरीमें दो संन्यास णीयां रहती थी, तिसमें एकका नाम सुलसा था, और दूसरीका नाम सुभद्रा था. येह दोनोंही, वेद वेदांगोकी जानकारथी. तिन दोनों बहिनोंने बहुत चादीयोंको चादमें जीते. इस अवसरमें याज्ञवल्क्य परिव्राजक, तिनके साथ वाद करनेकों आया. और आपसमें जैसी प्रतिज्ञा करी किं, जो हारजावे, वो जीतने वालेकी सेवा करे, तब याज्ञवल्क्यनें वादमें सुलसाको जीतके अपणी सेवा करनेवाली बनाई. सुलसाभी रातदिन याज्ञवल्क्यकी सेवा करणे लगी. याज्ञवल्क्य, और सुलसा, यह दोनों यौवनवंत (तरुण) थे, इस वारते दोनोंही कामातुर होके भोगविलास करने लगगये. दोनों काम क्रिडामें मग्न होकर काशपुरीके निकट कुटीमें वास करते थे. तब याज्ञवल्क्य, और सुलसासें पुत्र उत्पन्न हुआ. पीछे लोकोंके उपहासके भयसें उस लडकेकों पीपलके वृक्षके हेट छोडकर दोनों नटके कहीं चले गये. यह वृत्तांत सुभद्रा; जो सुलयाकी बहिन थी, उसने सुणा.