________________
(१०) चक्रवर्तिसें आर्य वेदोंकी उत्पत्ति हुई. भरतने ब्राह्मणों के पढने वास्ते, शुभध्यान, और श्रावक धर्म काव्य . बहार चलाने वास्ते बनाए. जब सातजिनों के अंतरोमे, (श्री सुविधिनाथ पुष्पदंत के निर्वाणसे, श्री धर्मनाथजी के तीर्थ प्रवर्तितक,) तिनोंके तीर्थके व्यवच्छेद हूये, अर्हन धर्मभी व्यवच्छेद हुआ तबतिन ब्राह्मणा भासोंने मिथ्या वेद बनाके प्रवर्ती ए. और अपनी पूजा भक्ति करवाइ. असंजतिहो के जगत् में पूजवाए. यह असंजति पूजानामा आश्चर्य ऊत्पन हूआ. ईनोंका विशेष वृत्तांत आवश्यक सूत्रादि शास्त्रों में है.
(११) __ श्रीश्रेयांसनाथ अरिहंत, तिनके ७६, गणधर, और ७६, गच्छ. आवश्यकादौ.
(१२) श्री वासुपूज्य अरिहंत, तिनके ६६, गणधर,और, ६६, गज्छ. आवश्यकादौ.
श्री विमलनाथ अरिहंत, तिनके ५७, गणधर, आर, ५९ मत लपलादी.