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( ५ ) आर्यवेद, और सम्यग् दृष्टि ब्राह्मण, यह दोनों वस्तु ये श्री सुविधिनाथ पुष्प दंततक यथार्थ चली. तथा जब श्री ऋषभदेवका कैलास (अष्टापद) पर्वत के उपर निर्वाण हूआ, तब इंद्रादि सर्व देवता निर्वाण महिमा करने को आये. तिन सर्व देवताओंमें सुं अभिकुमार देवताने श्री अषमदेवकी चितामें अनि लगाई. तबसें ही यह श्चति लोकमें प्रसिद्ध हुई है. "अमि सुखा वै देवाः” अर्थात् अग्निकुमार देवता सर्व देवताओंमें मुख्य है. और अल्प बुद्धियोंने तो यह श्रुतिका अर्थ ऐसा बनालीया है, कि अमि जो है, सो तेतीसकोड ३३०००००००, देवताओंका मुख है. और जब देवताओंने श्री ऋषभदेवकी दाढा वगैरे लीनी, तब श्रावक ब्राह्मण मिलकर देवताओंकों अति भक्तिसे याचना करते हुए, तब देवता तिनकों बहुत जान करके बडे यत्नसें याचनासें पीडे होए देखकर कहते हूए कि, अहो याचकाः ! अहो याचकाः! तब हीसे ब्राह्मणोंकों याचक कहने लगे. तथा ब्राह्मणोंने श्री ऋषभदेवकी चितामेंसें अनि लेकर अपने अपने घरों में स्थापन करा, तिस कारणसें ब्राह्मणकों आ हितामय कहने लगे. तथा श्री ऋषभ