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६४ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो.
२८ मोह मायाने तजीने विवेक आदर. ___ 'हुँ अने मारू' ए मोहना मंत्री जगत् मात्र आंधळु थइ गयुं छे. परंतु 'नहि हुँ अने नहि मारं' ए प्रतिमंत्र मोहनो पण पराजय करवाने समर्थ छे.
शुद्ध आत्म द्रव्य एज हुँ छु अने शुद्ध ज्ञानादि गुण एज मारुं धन छे. ते शिवाय हुं अने मारूं कंइ नथी, एवी शुद्ध समज मोहर्नु निकंदन करवाने समर्थ छे. तेथी दरेक मुसुक्षुए एज आदरवा योग्य छे.
नाना प्रकारना राग द्वेषवाळा विकल्पो वडे जेणे मोह मदिरार्नु पान कयु छे ते पोतानुं भान भूलीने अनेक प्रकारनी विपरीत चेष्टाओने वश थइ चारे गतिमां भमतोज फरे छे, अने विडंबना पात्र ज थाय छे. तेथी मोह मायामां नहि फसातां तेनोज क्षय करवा यत्न करवो युक्त छे. मोह मायाने सर्वथा जीतनारा अप्रमत्त मुनियोज जगतमां शिरसा वंद्य छे. सर्वथा मोह रहित वीतराग मुनियोज परम शान्त छे.
वज्रबंधन करतां पण रागवंधन आकरुं छे अने तेने माटे प्रवळ वैराग्यनी पुरती जरुर छे. वैराग्यव.. गमे ते, राग बंधन दूर थइ जाय छे.