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________________ ४२ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जा. सत्य बोलनारनुं मन निर्भय रहे छे, तेथी तेने खोटा संकल्प विकल्प करवा पडता नथी. सत्य वचनमा टेक राखनारने देवता पण सहाय करे छे. सत्य वचन क्षीरसमुद्रना जळ जेवू मीटुं छे तेथी सत्यनुज पान करनारने खारा समुद्रनां जळ जेवां असत्य वचनथी कदापि संतोष वळतोज नथी. असत्य भाषणथी भोळा लोकोने अवळे रस्ते दोरनार जेवो कोइपण विश्वासघाती-महापापी नथी. तेथी सभासमक्ष भाषण करनारे पोतानी जवाबदारी सारी रीते विचारी राखवानी जरुर छे. केमके तेना उपर लाखोगमे माणसोना भविष्यनो सवाल रहेलो छे. ___ सत्यना रागीए लक्षमा राखq जोइये के दुनियामां असत्य बोलवानां कारण मात्र क्रोध, मान, माया, लोभ, भय के हास्यज होय छे, अने जेम बने तेम काळजीथी तेवां कारणाने दूर करीने सत्यज वचन वदवू एवा सत्यवादीनो सुयश कालिकाचार्यनी पेरे चिर स्थायी रहे छे. - सत्यनी खातर पोताना प्रिय प्राणने पण गणे नहि तेज सत्य धर्मनो अधिकारी छे. एम समजीनेज युधिष्ठिर प्रमुखे प्राणांत मुधी ते व्रतनुं पालन कर्यु छे.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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