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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. सर्वे जीवितज इच्छेछे, कोइपण मरणने इच्छतुज नथी. एम समजी निग्रंथ पुरुषो अहिंसाव्रतनो अत्यंत आदर करे छे. ___ मनथी, वचनथी, के कायथी हिंसा करवा कराववा के अनुमोदवानो सावधानपणे त्याग करवाथीज अहिंसावतर्नु पूर्ण रीते पालन थाय छे. जे जेवा मंद के उत्कृष्ट परिणामथी परने परिताप करे छ ते तेनो तेवोज अल्प के अधिक विपाक भोगवे छे. तथा कोइ रीते कोइने पण पीडा ऊपजे एबुं मनथी, वचनथी.के कायाथी, करवू, करावq के अनुमोदयूँ नहि. केमके जेई वीज वावीये तेज फळ पाभीये. कळी आपणने दुःखमान अनिष्ट छतां जो आपणे अन्यने आपणा तुच्छ स्वार्थनी खावर जाणी जोइने असमाधि उपजाविये तो पछी तेना बदला तरीके आपणने पण असमाधिज पेदा थाय तेमां आर्थर्य शुं ? तथा उत्तम रस्तो एज छे के सारा के नरसा अजुकूळ के प्रतिकूळ संजोगोमां सहनशीळपणुं धारण करीने कोई जीवने कंइपण असमाधि नहि करतां बनी शके तेटली समाधि करवा प्रयत्नशील था. आवा कठीण पण सीधे रस्ते चालनार सत्पुरुषने कदापि कंइपण कष्ट प्राप्त थवानु नथी, एटलुंज नहि पण ते सत्पुरुष पोताना सदाचरणथी श्रेष्ठ सुखनोज अधिकारी थवानो.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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