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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १७१ (१५५) मुमुक्षुजनोए शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्श संबंधी सर्व विषयआसक्तिथी सावधपणे दूर रहे, युक्त छे. __ (१५६) मुमुक्षुजनोए विषय वासनानेज हठाववा यत्न करवो जोइए.
(१५७) मुमुक्षुजनोए गृहस्थोनो परिचय तजीने ब्रह्मचर्यनी खुव पुष्टि थाय तेम पवित्र ज्ञान ध्यायनो सतत अभ्यास करवो जोइए, __ (१५८) मुमुक्षुजनोए स्त्री, पशु, पंडग विनानुं संयमने अनुकूळ स्थानज रहेवाने पसंद करवू जोइए.
(१५९) मुमुक्षुजनोए कामविकार पेदा थाय एवी कोइ पण चेष्टा करवी न जोइए. स्त्री कथा, स्त्री शय्या, स्वीनां अंगोपांगर्नु नीरीक्षण, स्त्री समीपे स्थिति, पूर्वे करेली कामक्रीडानुं स्मरण, स्निग्ध भोजन तथा प्रमाणातिरक्त भोजन, तथा शरीर विभूषादिक सर्व तजवां जोइए.
(१६०) मुमुक्षुजनोए पूर्वे थयेला महा पुरुपोना पवित्र चारित्रने जाणीने तेमनुं वनतुं अनुकरण करवाने सदा सावधान रहेवू जोइए.