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१६८ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
(१३८) सद्गुरुनी कृपाथी प्राप्त थयेला सद्बोधवडे, संयम मार्गमां आवता अपायो सहेलाइथी दूर करी शकाय छे.
(१३९) मुमुक्षजनोए चंद्रनी पेरे शीतळ स्वभावी, सायरनी जेवा गंभीर, भारंड पंखीनी जेवा प्रमाद रहीत, अने कमळनी पैरे निर्लेप थq जोइए. यावत मेरु पर्वतनी परे निश्चळता धारीने सिंहनी जेम शूरवीर थइने वृषभनी पेरे निर्मळ धर्मनी धुरा मुनिजनोए अवश्य धारवी जोइए.
(१४०) मुमुक्षुजनोए कंचन अने काम ने दूरीज तजवां जोइए.
(१४१) घुमुक्षुजनोए राय अने रंकने सरखा लेखवा जोइए. तथा समभावथी तेमने धर्म उपदेश आपवो जोइए.
(१४२) मुमुक्षुजनोए नारीने नागणी समान लेखी तेणीनो संग सर्वथा तजवो जोइर. नारीना संगथी निश्चे कलंक चडे छे.
(१४३) मुमुक्षुजनोए समरस भावमां झीलता थकां शास्त्र अवगाहन कर्या करवू जोइए.
(१४४) मुमुक्षुजनोए अधिकारीनी हितशिक्षा हृदयमा धारीने व शक्तिने गोपच्या विना तेनुं यत्नथी पालन कर जोइए. कोइ