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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. सापणी स्पर्श करीने करडे छे अने नारी तो दूरथीज डंस मारे छे. तेथी एम समजाय छे के दृष्टि विष सर्पनी जेम तेनी दृष्टिमांज झेर रहेलुं छे. एवी स्त्रीचं नाम सांभळतांज स्थानान्तर चाल्या जवू जोइए. .
सर्वरीते संयम प्राणने हरनारी होवाथी नारीने शास्त्रकारे प्रत्यक्ष राक्षसी कहीने बोलावी छे. छतां तेनो विश्वास करनार साधुना चरित्र विषे वधारे शुं कहेवू ? स्त्रीसंगी साधु जरुर संयमथी भ्रष्ट थइ जाय छे.
सारांश ए छे के भवभीरु होवाथी जेओ भगवंतनी आज्ञा मुजव स्त्रीना अंगोपांगने पण दृष्टि दइने नीरखता नथी, विकार वुद्धिथी (पशु वृत्तिथी) तेनी साथे वात पण करता नथी, अने मनथी विषय सुखनी भावना करता नथी, एम सर्व रीते सावधान थइने ब्रह्मचर्य- पालन करे छे तेज महात्माओ आ दुस्तर भवोदधिने सहजमां तरीने अक्षय सुखना अधिकारी थाय छे. एवा महाशयो नांन शुद्ध चरित्र अनुकरण करवा योग्य छे. वळी को छे केन चराजभयं न च चोरभयं, इहलोक सुखं परलोक हितं ॥ वर कीर्तिकरं नरदेवन, श्रमणत्व मिदं रमणीयतरं ॥१॥
जेने नथी तो राज भय अने नथी तो चोरभय, आ लोकमां