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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. - - ॥ रहस्यार्थ ॥ १. पूज्य पूजा बे प्रकारनी छे, एक द्रव्यपूजा तथा भावपूजा. शुद्ध लक्षथी करवामां आवती द्रव्यपूजा भावपूजानुं कारण होवाथी अधिकारी जीवनें अधिक उपकारी थाय छे. गृहस्थ द्रव्यपूजानो मुख्यपणे अधिकारी छे, अने मुनि भावपूजानाज अधिकारी छे. परंतु गृहस्थ पण शुद्ध लक्षथी द्रव्यपूजावडे भाव साधी शके छे. तेथी ते अंते भावपूजानो पण अधिकारी थइ शके छे. माटे स्व स्वरचित कर्तव्य करवामां प्रमाद नहिं करतां शुद्ध लक्षपूर्वक आत्मार्पण करतां रहे जोइये. प्रथम भावपूजानुं स्वरूप प्रतिपादन करेछे, एवा शुद्ध लक्षथी जो गृहस्थ द्रव्यपूजा करवामां आदरवंत थाय तो ते पण अंते ते भावने पामे. मुनिनुं तो ए खास कर्तव्यज छे. माटे तेने उद्देशीने मुख्यपणे अत्र कथन छे, पण एवँ लक्ष गृहस्थने पण कर्तव्य छे. २. हे भाइ ! निर्मलदया-जलथी स्नान करी संतोषरूपी शुभ वस्त्रने धारी, विनेकरूप तिलक करी, भावनावडे पवित्र आशय वनी, भक्तिरूप केशर घोली, श्रद्धारूप चंदन भेलची, तेमज अन्य उत्तम गुणरूप कस्तूरी प्रमुख संयोजी नवविध ब्रह्मचर्यरूप नवअंगे शुद्ध आत्मारूप देवाधिदेवनी तुं भावथी पूजा कर, ३. क्षमारूपी सुगंधी पुष्पमाला तथा विविध धर्मरूप वस्त्र युगल तथा शुभ ध्यानरूप श्रेष्ठ आभरण हे महानुभाव ! ते प्रभूना
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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