SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. गानो गर्व गाली नांखी ज्ञानानिमा कर्मनोज होम करवो घटे छे. प्रथम अहंकारनो होम करतां कमनोज होम करवो ठरेछे. माटेज पापयुक्त कर्म-यज्ञ करवानो कदाग्रह तजी गृहस्थोए तेमज साधुओए उपरनी युक्ति युक्त वात विवेकथी विचारी स्व स्वरचित सदाचार सेववो ज योग्य छे. ७-८. आत्म समर्पण करनार, तत्त्वदर्शी, तत्त्वसाधक, तत्त्वज्ञानवडे अज्ञाननो उच्छेद करनार शुद्ध ब्रह्मचर्य सेवनार, तत्त्वअभ्यासगां रक्त रहेनार, अने स्वरूपमांज रमण करनार एवा निश्चित याग संपन्न साधुओ कदापि पापकर्मथी लेपाता नथी, निर्लेप रहेवा इच्छनार साधुए अनंतरोक्त लक्षण धारवां जोइये. वाकी तो अहंताममता, अज्ञान, अविवेकाचरण, अने स्वार्य अंबतादिक सर्व अपलहणो तो केवळ दुर्गतिनां ज कारक छे, माटे ए सर्वथी अलगा थइ स्वहित साप घटे छे. ॥ २९ ॥ पूजाष्टकम् ॥ दयाँभसा कृत स्नानः, संतोष शुभवस्त्रभृत् ॥ विवेक तिलकभ्राजी, भावना पावनाशयः॥१॥ भक्ति श्रद्धान घुमृणो, मिश्रपाटी रज द्रवैः ।।
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy