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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. पण श्रुत ज्ञानना अंते प्रगटे छे. एटले के श्रुत ज्ञान कारण छे अने अनुभव ज्ञान कार्यरूप छे. सम्यग् ज्ञान विना कदापि कोइने पन अनुभव प्रगटे नहि. माटे कार्यार्थी जेम कारण- सेवन करे तेम अनुभवना अर्थीए श्रुत ज्ञाननु अवश्य सेवन करवू.
२. शाखो तो फक्त दिग्दर्शन करावे छे. बाकी संसारनो पार तो अनुभवज करावे छे. जेम कोइ मार्गमां मळेलु माणस मार्ग भ्रष्टने खरा मार्गनी दिशा बतावी दे छ तेम शास्त्र पण मोक्षनो मार्ग आम छ एम बतावी दे छे. पण जेम साथे लीधेलो भूमियो ठेठ मार्गे पहों चाडी आपे छे. तेम सहज अनुभव ज्ञान पण ठेठ पार पहोंचाडे छे.
३. विशुद्ध अनुभव विना शास्त्रनी सेंकडो युक्तिवडे पण परमात्मवत्व समजी शकाय तेवू नथी. जेनु स्वरूपज शब्द, रुप, रस, गंय, अने स्पर्शरहित होवाथी अतींद्रिय छे, तेनु प्रतिपादन अक्षरवर्ण वाक्य मात्रथी शी रीते थइ शके एक तो अरूपी आत्मद्रव्य अने बीजुं दृष्टांत दइने ते सुखेथी समजी शकाय एवं कंइ उपमान नजरे ज पडतुं नथी, तेथी अंते एवाज निश्चय उपर आवी शकाय के परमात्मतत्त्व जेवू कंइ वीजुं छेज नहि, ते तत्त्व पामेला सर्व समानज
छ, तथा तेवो सत्य अनुभव थयेज ते तत्त्व समजी शकाय एम छे, __ पण अनुभव ज्ञान प्रगट्या विना परमात्मतत्त्व यथार्थ समजी शकाय
तेम नयी. माटे तेवो अनुभव प्रगटाववा श्रुत ज्ञान विषये पूरतो प्रयुव करवो युक्त छे.