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जैनहितोपदेश भाग ३ जो. तेम सत्य व्यवहार सेवन विना शुद्ध निश्चय मार्ग पण मली शकतो नथी. माटे शुद्ध निश्चयार्थीने व्यवहारनो अनादर करवो युक्त नथी, पण शुद्ध मार्ग माटे सत्य व्यवहार विशेषे सेवन करवू घटे छे.
५. गुणवंत वहुमान बनी शके तेटलं करवा पूर्वक ते नित्य स्मरण करवा प्रमुख सत् क्रियाथी उत्पन्न थयेला भावने टकाची राखवा साथे नवा भावने पण पेदा करवातुं बनी आवे छे. माटे गुणना अर्थीए हमेशां सत् क्रियानुं आलंबन लीधाज करवू.
६. प्रथम अभ्यासरुपे जे सत् क्रिया करवामां आवे छे तेथी एवो संस्कार जामी जाय छे के ते क्रिया अंते शुद्ध अने असंगपणे यया करे छे. तेमज कचित् दैववशात् पतित थयेलाने पण पूर्वला भावनी प्राप्ति थइ आवे छे. परंतु जेओ प्रमादने पराधीन पडया छता सत् क्रियानुं सेवनज करता नथी तेवा मंदभागीने तो गुणमा आगल वधवानुं साधनज मली शकतुं नथी.
७. माटे सद्गुणोनी वृद्धि माटे तेमज मास थयेला सद्गुणोथी भ्रष्ट नहि थवा माटे सदा सत् क्रिया सेव्याज करवी युक्त छे. एवो शुभ अभ्यास वीतराग दशा प्राप्त थतां सुधी सेवचा योग्य छे. समस्त मोहनो क्षय थवा पामे त्यां सुधी एवा शुभ अभ्यासमा प्रमाद करवो अयुक्त छे. प्रमाद सेवनथी तो उलटो अनर्थ पेदा थाय छे. माटे परमात्म दशा प्राप्त थतां सुधी अप्रमत्त भावज आदरवा योग्य