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जैनहितोपदेश भाग ३ जो. स्थले भटकी भटकीने शा माटे खेद धारण करे छे ? फकत अस्थिरतानु सेवन करवाथी तने सर्व समृद्धि तारा घटमांज देखाशे. स्थिरता विना अनंत गुणनिधान स्व समीपे छतां देखी शंकातो नथी. ___२. जेम खटाशथी दूध फाटी जइ विनाश पामे छे. तेम अस्थिरता योगे थता अनेक संकल्प विकल्पोथी ज्ञान गुण क्षाभ पामी विनाश पामे छे. अने स्थिरता योगे ज्ञान गुणनी वृद्धि थाय छे एम समजीने तुं स्थिर था.
३. चित्त अस्थिर छते करवामां आवती अनेक प्रकारनी क्रिया कल्याणकारी थती नथी. जेम व्यभिचारिणी स्त्री चतुराइ भरेलां वचन बोले छे. अने घुमटो ताणीने चाले छ छतां अवळी चालथी तेवी चेष्टा तेणीने हितकारी नथी. तेम चपल चित्तवालानी पण वि. विध क्रिया आश्रयी जाणवू. पतिव्रता स्त्रीनी पवित्र - आशयवाली क्रियानी पेरे स्थिरतावंतनी सर्व उचित क्रिया लेखे पडे छे..
४. ज्यां सुधी अस्थिरतारुपी अंतरनु भारे शल्य उद्धयु नथी त्यां सुधी गमे तेवी उत्तम क्रिया पण यथेष्ट फल आपी शकशे नहीं. जेम शरीरनी शुद्धि कर्या वाद लीधेलु औषध तत्काल गुण करी शकछे. तेम अस्थिरता वाळाना अनुष्टान आश्रयी पण समजवुः ..' . ५. जेमने मन वचन अने कायावडे संपूर्ण स्थिरता व्यापी गई छे तेवा योगी पुरुपौने गाममां के वनमां दिवसमां के रात्रिमा सम- ।।