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________________ कथन करेलुं छे, एमः उक्त ग्रंथना नाम तथा तद् अंतगत विषयो उपरथी समजी शकायःछे. आविषयोन स्वरूप एकाएक तेना सारा संस्कार विना वांचवा मात्रथी समजी शकाय एम नथी माटे तेनुं मनन करवा अने तेम करी जरुर जणाय त्यां गुरु गम्य लही समजवा दरेक कल्याणार्थीने प्रथम भलामण छे. निश्चय अने व्यवहार ए बंने मार्ग जिनोपदिष्ट छे. व्यवहार मार्गे थइने निश्चय मार्ग साधी श__ काय छे. शुद्ध ज्ञान दर्शन चारित्रमा एकता पामी-तन्मय थइ जवू ए निश्चय मार्ग छे. अथवा विभावने वमी-परस्पृहाने तजी स्वभाव रमणी थर्बु, स्वरूपस्थ थइ रहे, तेज निश्चय मार्ग छे तेने पमाडनार व्यवहार मार्ग छे. ते व्यवहारनी उपेक्षा करनार उभय भ्रष्ट थायछे, जे माटे आ ग्रंथकारज अन्य स्थळे कहे छ के निश्चय दृष्टि हृदय धरीजी, जे पाले व्यवहार ॥ पुन्यवंत ते पामशेजी, भव समुद्रनो पार. ॥मन मोहन जिनजी० ॥ आ अपूर्व ग्रंथना आदर पूर्वक अभ्यासथी भव्यात्माओ अक्षय __ सुखना अधिकारी थाओ! एम इच्छी आ प्रस्तावना पूर्ण करुं कुं. लेखक स्वपर हितकांक्षी, कर्पूरविजयजी.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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