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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव, अने संघयण विगेरे विचारी स्वशक्तिना प्रमाणमां समज पूर्वक सद्वतोने धारण करीने जे तेमनुं अखंड पालन करे छे तेमनुज जीवित सफळ छे, परंतु जे कंइ पण पूर्वापर विचार कर्या विना विवेक शून्यपणे व्रत लइने विराधे छ । तेपर्नु जीवित केवळ निष्फळ छे. व्रत खंडीने लुहारनी धम्मणनी जेम जीवनने गाळनार जेवो कोइ कमनशीब नथी. व्रत खंडीने जीवनार करतां व्रतने अखंड राखीने मरनार माणस घणो उत्तम छ, केमके अनेक भव भ्रमण करतां पवित्र व्रत पालननी रुचि थवीज मुश्केल छे तो तेने प्राणान्त मुधी अखंड पालन करवानी प्रवळ कामनानुं तो कहेज शृं? : ग्रहण करेला पवित्र व्रतोन अखंड पालन करीने परलोक गमन करनार माणसो पोतानी पाछळ अखंड कीर्ति अने अमूल्य दृष्टांत - मुकता जाय छे, जेने अनुसरीने अनेक आत्महितेच्छक जनो सन्मागर्नु सारी रीते सेवन करे छे. भरतेश्वर, बाहुबली प्रमुख अनेक : सताओना अने बाली, सुंदरी प्रमुख अनेक सतीओना एवा . उत्तमोत्तम दाखला जगतमां प्रसिद्धज छे. ___ हाय तो स्त्री होय या तो पुरुष होय पण पुरुषार्थ परायणतायीज सव्रतोनी समज मेळवीने ते तेमनुं विधिवत् पालन करी - शके छे, अने एम विधिवत व्रतनं अखंड पालन करीने स्वजीवन
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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