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________________ (८० ) काजे, तिणतूं झगड़ा करता नहीं लाजैरे। स० ॥ १८॥ ओ तो पेट भरगारो करैछै उपाय, लोकांनै घालेछ फन्द मांयरे । स० ॥ इण विध कई बाले अजानी, ते तो भाषा काढे मनमानौर। स० ॥१६॥ इसडो अन्धागे हॅता तिगाकाले, अशुभ उदय माया न सम्भालेरे । स० ॥ तीर्थ कर थका हुओ इसडा बेहदा, ते तो अनादि कालरा सेंहदारे । स० ॥ २० ॥ इमि सांभल उत्तम नरनारी, अन्तरङ्ग माहीं करज्या बिचारी रे। स० ॥ पक्षपात किगारौ मूल नहीं कीजै, साचो मार्ग ओलख लीजै । स० ॥ २१ ॥ * अथ दश दानोंको ढाल * ॐ दोहा दशदान भगवन्त भाषिया, सूव ठाणांग मांय । गुण निपन्न नामछे तेना, भोला ने खवर न काय ॥१॥ धर्म अधर्म दो मूलका, प्रमिद्ध लोकमें एह । पाठां को अर्घ ऊंधी करे, मिश्र धर्म कहे तेह ॥२॥ मिश्य धर्म परुपता, कूड़ो वाद करन्त । पाठांमें अधर्म कहो, सौम्भलज्यो दृष्टन्त ॥३॥
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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