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( २२५ ) जायजी। तिहां पिण दुख पामें अति घणां, ते तो पूरा कम कहायजौ ॥ जी० ॥ ६० ॥ बली निगोद में पडियां पछे, दुख पामें अनन्तो कालजी। परिभ्रमण करे संसार में, जाणे अरट तणी घडमालजी ॥ जी० ॥ ६१ ॥ इम हलतो संसार में, कदे मनुष्य तणो भव पायजी । ते किम पावै छै अवसाता, ते सांभल ज्यो चितलायजौ ॥ जी० ॥ ६२ ॥ त्यांरी बाल पणे माता मरे, बले पितारो पड़ बिजोगनी । सयण सगारी बिछोह पड़े, मिलै दुशमणरो संजोगजौ ॥ जी० ॥६३॥ बालक थको सी बेटा बेटियां, बले घर भांगे अंघगालजी । दुख दुख जमारी पूरो हुवै, बले आवे अणणहुतो आलजी ॥ जौ० ॥६४॥ कई होय ट्रॅटां पांगला, कोई गूंगा बेहरा जाणजी। आई होय जावे आंधां ने दरिद्रौ, रहे दिन दिन ताणा ताणजी ॥ जी० ॥ ६५ ॥ सोलह रोग शरीर में उपजे, तिणस्यूं पामें दुःख संतापजी । जनस मरण ग दुख पामें घणा हिंसा धर्म तणे प्रतापजी ॥ जो० ॥ ६६ ॥ सूयगडांग अंग अध्ययन अठारसें, ए आवे कह्या जिनरायजी। ड्रम सांभल ने नर नारियां, धर्म हेत मत हणो छः कायजी ॥ जी० ॥६॥ देवल हिंसा निषेधी सांभलै, कोई पाछो उत्तर देवे हामजी । पाम हुवै ती नहीं लगावता,