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( २०० ) लास अनन्त । तिगाम्यं भगवंत री प्रतिमा करे वांदे, तिगा प्रतिमा ने लेखवे भगवन्त ॥ था० ॥४०॥ प्रणाम चले ज्च स्त्री दीठां, विषय न दौठा रहे शुद्ध प्रणाम । ञ्च प्रतिसा दीठां भगवन्त याद अावे, एहवा कुहेत लगावे ताम ॥ था० ॥ ४१ ॥ उण रे मा बहन स्त्री हुवै एक आकारे, कदे एक दौठां याद आवती नाही, मिण एक तीनां ज्य काम न बाई, याद आवे पिण गरज सरै नहौं कांई ॥ था० ॥ ४२॥ कदे प्रतिमा दौठा सगवन्त याद अावे, कादे भगवंत दौठो प्रतिमा याद घाव। पिगा धसे तो अगवन्त नगा वांदया. प्रतिमा गुगा वांद्या कर्म बंध जावे ॥ था० ॥ ४३ ॥ मा बहन आकार स्त्री तिगा स्यं , घरबासो करतां शंकामन आणे. ज्य गुण विन आकार वांदी तिगनें, स्त्री ने मा वहन ज्य को न जाणे ॥ था० ॥ ४४ ॥ माय बहन स्त्री तिगाने दीठां हरखैरे विषै ते कास । ज्य प्रतिमा दौठां मन धो तो, काय सार गाग किया परिणाम ॥ था० ॥४५॥ मा वहन प्राकारे स्त्री हु तो सा बहन री गरज निश्चय नकों सारे, ज्य भगवन्त रे प्राकारे प्रतिमा वौधी, ते बापिण जागो कदे नहीं तारे । था० ॥ ४६॥ भगवन्त रे आकार प्रतिमा वांदे, त्यारे प्राकारे बले अनेक बिलापो । उगारा वाप रे आकारे मिनख घगा