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( १७५ ) जाव नियम (मुहर्त एका) पज्जवासामो दुविहेण यावत नियम एक मुहूर्त ते सेऊ शें दोय करण
दोय घड़ी तिबिहेणं नकरीमि नकारवमि मनसा वायसा तीन जोग नहीं करू नहीं कराऊ मनसे बचन से कायसा तसभ ते पडिक्वमामि निन्दामि गरिहामि शरीरसे तिणसं हे पडिक निन्दू छू ग्रहणा ते भगवान
निषेधूं धूं . अप्पाणं वासरामि ॥ पाप ते आतमांनेवोसराऊडूं
द्रवाथको कनै राख्या ते द्रवा क्षबथको सर्व क्षेत्रांमें कालयको एक मुइत तांई भावथको राग द्वेष रहित उपयोग सहित गुणथको संबर निर्जरा एहवा नवमां ब्रतके विषै जे काई अतिचार दोष लागा हुवे ते आला।।
मन बचन कायाका माठा जोग प्रवाया होय १ पाड़वा ध्यान प्रवर्ताया होय २ सामायक में समता नहीं करौ होय ३ अणा पूगी पारी होय ४ पारवा विसास्यो होय ५ तस्स मिच्छामि ढुक्कड।
॥ इति ॥ दशमों देशाबिगासी ब्रत पांचां बोलांकरी ओलखोज द्रवाथको दिन प्रते प्रभातथौ प्रारंभौने पुर्वादि