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( १७४ ). सूतहिउवा ७ जख्ख हिउवा ८ भूत देवता जक्ष देवता निमित्त निमित्त
द्रवाथको एहिज द्रवा वथको सर्व क्षेत्रांमें कालयको जाव जीव लग, भावथकी राग द्वेष रहित उपयोग सहित, गुणथको संबर निर्जरा, एहवा म्हारा बाठमां ब्रत के विषै जे कोई अतिचार दोष लागीहुवै ते आलोउ। कांदय नी कथा बोधी होय १ भंडकुचेष्टा कोधीहोय २ काम क्रिडाकी कथा करवो भांडनीपरै कुचेष्टाकरी होय मुखसे अरि बचन बोल्या होय ३ अधिकरण मुखसे खोटा वचन बोल्या होय
नाताजोड़कर जोड़ सुकाया होय ४ उपभोग परिभोग तुड़ाया तथा स्त्री भरतार एकवार भोग वारम्बार भोग __नो विरह कियो
में आवै ते में आवै ते अधिका भोगवा होय ५ तस्स मिच्छामि दकडं मर्याद उपरांत अधिक
तो मिच्छामि दुक्कडं भोग्या होय ते
॥ इति ॥
नवमा सामायक ब्रत पांचां वीलांकरी पोलखोज करोमि सन्त सामाईयं सावन्न जोगं पच्चखामि फरूं धूं में है भगवंत सामायका सायद्य जोग पचखाण
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