________________
( १६७ ) मृषा उपदेश दोधी होय ४ कूड़ो लेख लिख्यो होय ५ तम्स मिच्छामि दुकडं तद्वये अणुव्वए थ लाउ अदिन्ना दागाउ विरमणं तीजो अणूव्रत स्थूलथकी अणदोयो लेवो ते चोरीको
निवर्तवो पांचे बोले कगै ओलखोजे द्रव्यथनी खात्र खगो गांठखोलो तालो पडकंचौकरी वाटपाड़ी पड़ौवस्तु माटको सधणियां सहित जाणी इत्यादिक मोटको चोरी मर्याद उपरांत करू नहीं कराउं नहीं मनसा बायसा कायसा द्रव्यथको एहिज द्रव्य, क्षेत्रथको सर्व क्षेत्रां मे, कालथको जावजीवलगे, भावथको राग द्वेष रहित, उपयोग सहित, गुणथको संबर निर्जरा एहवा म्हारै तीजाब्रतमें ज्यो कोई अतिचार लागी होय ते आलोउं । - चोरको चुराई बस्तु लोधी होय १ चोग्ने सहाय दौधो होय २ राज विरुद्ध व्योपार कोधी होय ३ कूड़ा वाला कूड़ामापा किया होय ४ बस्तु में भेल सभेल कौधो होय ५ सखरी दिखाय नखरी मापी होय तस्स मिच्छामि टुकडं ।
॥ इति
॥